अब यारों से होती, पहली सी मुलाक़ात नहीं, अब हमारे बीच अल्फाज़ हैं, वो जज़्बात नहीं। अल्फाज़ मरे हुए, ज्यों शाख से पत्ते झरे हुए, तआल्लुक़ दम तोड़ता हुआ , और दम तोड़ते तआल्लुक़ से डरे हुए, अल्फाज़ ग़म ओ कोफ़्त से भरे हुए, ज़ख्म फिर से कुछ हरे हुए, ये डूबता सूरज, हो जाये ना सियाह रात कहीं। अब यारों से होती, पहली सी मुलाक़ात नहीं, अब हमारे बीच महज़ अल्फाज़ हैं, वो जज़्बात नहीं। #madhavawana #dosti #zindagi #poetry #hardtimes