#OpenPoetry मुसाफ़िराना सी है ज़िन्दगी, कुछ मंज़िले अधूरी सी है, कुछ ख़्वाब मुकम्मल हुए हैं, बस कुछ थोड़े और बाकी है। ना रात की गहराइयाँ दहला सकी, न दिनों के मशरूफ़े हिला सके, हैरान कम्भखत मेरे दिल ने कहा, रहने दे अब जो भी बाकि है, बीत गए कई लम्हे, मौसम भागते भागते, मंज़िले-ए-ख्वाहिश के चक्कर में, कुछ सुकून मेरी रूह भी चाहती है, कुछ दो पल का आराम अभी बाकि है, भाग रहा हूँ न जाने किस ख़्वाब की चाहतों में, हैरान परेशान थका हुआ सा, आँखों में भरी बहुत नींद सी है, डर तो इस बात का है के, पागल दिल के फरमान अभी बाकि हैं, मुसफ़िराना सी है ज़िन्दगी, कुछ मंज़िले अधूरी सी है, कुछ ख़्वाब मुकम्मल हुए हैं, बस कुछ थोड़े और बाकी है। 1 like kardena #OpenPoetry