हर ग़म हर दर्द सह लेती हूं! पलकों में सपनों की लौ जला, बुझती जलती हूं! एक तू है नज़रे चुराता है मुझसे, बस तेरे ख़ातिर मैं आँखों में काजल लगाती हूं!! गम में भी खुशियों के, नज़्म गुनगुनाता रहा। सिर्फ़ तेरे ख़ातिर मैं, प्यार के गीत गाता रहा।। सौजन्य से:- काव्य पथिक™ 👉आइए आज लिखते हैं कुछ अनकही बातें किसी एक के लिए, .... यह कोई प्रतियोगिता नही और न ही "काव्य पथिक" किसी भी कवि/ कवियित्रियों को हार जीत के तराज़ू में तौलने को इक्षुक है, यहाँ लिखने और सीखने में रुचि रखने वालों के लिए प्रत्येक दिन सिर्फ एक विषय दिया जाता है, जिसे वो अपने लेखनी के माध्यम से सजाते व सँवारते हैं। "काव्य पथिक ™" आप सभी कलमकारों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है।