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नानक नौका धर्म की,चढ़के उतरो पार। प्रीत जगत से तुम

नानक नौका धर्म की,चढ़के उतरो पार।
प्रीत जगत से तुम करो,हो इससे उद्धार।।
पखापखी के भेद में,पड़ना ना इन्सान।
समता ही वह मंत्र है,प्रमुदित जिससे प्राण।।
पीर जगत की जो हरे,सच्चा वह है संत।
अपना केवल सोचकर,बने न कोई महंत।।

©Bharat Bhushan pathak #gurunanakjayanti 
नानक नौका धर्म की,चढ़के उतरो पार।
प्रीत जगत से तुम करो,हो इससे उद्धार।।
पखापखी के भेद में,पड़ना ना इन्सान।
समता ही वह मंत्र है,प्रमुदित जिससे प्राण।।
पीर जगत की जो हरे,सच्चा वह है संत।
अपना केवल सोचकर,बने न कोई महंत।।
नानक नौका धर्म की,चढ़के उतरो पार।
प्रीत जगत से तुम करो,हो इससे उद्धार।।
पखापखी के भेद में,पड़ना ना इन्सान।
समता ही वह मंत्र है,प्रमुदित जिससे प्राण।।
पीर जगत की जो हरे,सच्चा वह है संत।
अपना केवल सोचकर,बने न कोई महंत।।

©Bharat Bhushan pathak #gurunanakjayanti 
नानक नौका धर्म की,चढ़के उतरो पार।
प्रीत जगत से तुम करो,हो इससे उद्धार।।
पखापखी के भेद में,पड़ना ना इन्सान।
समता ही वह मंत्र है,प्रमुदित जिससे प्राण।।
पीर जगत की जो हरे,सच्चा वह है संत।
अपना केवल सोचकर,बने न कोई महंत।।

#gurunanakjayanti नानक नौका धर्म की,चढ़के उतरो पार। प्रीत जगत से तुम करो,हो इससे उद्धार।। पखापखी के भेद में,पड़ना ना इन्सान। समता ही वह मंत्र है,प्रमुदित जिससे प्राण।। पीर जगत की जो हरे,सच्चा वह है संत। अपना केवल सोचकर,बने न कोई महंत।। #Poetry