मुझे आज़ाद,करबाओ सजाओं से। बचा लेना बचा पाओ, दुआओं से। मरूँगा कब तलक यारों बताओ तो। कहो कुछ तो कहो मेरी दशाओं से। तुम्हें अब बंद कर देना पड़ेगा सब। बहुत खेले हमारी, भावनाओं से। कभी सोचो भला क्या बीतती हमपर। हमारी जाँ निकलती, आतमाओं से। दुआओं की जरूरत है मुझे शायद। बचूँगा ही नहीं, अब तो दवाओं से। ©सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र) #कविता_संगम #Womens_Cricket