रेत की ढ़ेर मे, घर बनाने चला था मै खुद को भुल, उसे पाने चला था मै लाख गल्तियां छुपाकर, किसी का सब लोगो से भी, छुपाने चला था मै उसकी एक, मुस्कराहट के खातिर खुद को भी, तड़पाने चला था मै तूफ़ान की हवाओं ने, सब बिखेर दिया फिर भी दोबारा उसे बनाने चला था मै ©Rupesh Dewangan #SandofDream