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जिसकी जीवन भर सबको तलाश रहती है उसी को आनंद कहते ह

जिसकी जीवन भर सबको तलाश रहती है
उसी को आनंद कहते हैं।
सम्पूर्ण सुख-समृद्धि का सूचक शब्द है।
और सृष्टि विस्तार का मूल कारक भी है।
आनन्द के बिना सृष्टि नहीं हो सकती।
आनन्द प्राप्त हो जाने के बाद
कुछ और पाने की कामना भी नहीं रह जाती।
आनन्द और सुख एक नहीं हैं।
आनन्द आत्मा का तत्व है
जबकि सुख-दु:ख मन के विषय हैं।
किसी भी दो व्यक्तियों के
सुख-दु:ख की परिभाषा एक नहीं हो सकती।
हर व्यक्ति का मन, कामना,
प्रकृति के आवरण भिन्न होते हैं।
अत: हर व्यक्ति का सुख-दु:ख भी
अलग-अलग होता है।
आनन्द स्थायी भाव है। Good morning ji
🍮😍😍☕☕☕☕☕☕🍫🍫🍫😊😊🍦🍨🍕🍯💖💓💘Hv a nice Saturday !😊
:💕😋
लोग अनेक प्रकार के स्वभाव वाले होते हैं। एक शरीर जीवी इनका सुख शरीर के आगे नहीं जाता। व्यायाम-अखाड़े से लेकर सुख भोगने तक ही सीमित रहता है। इसके आगे इनका सुख-दु:ख भी नहीं है। मनोजीवी अपने मनस्तंभ में आसक्त रहता है। कहीं किसी कला में रमा रहता है या नृत्य, गायन, वादन में। ये तो देश-काल के अनुरूप बदलते रहते हैं। हर सभ्यता की अपनी कलाएं और मन रंजन होते हैं। इनके जीवन में सांस्कृतिक गंभीरता का अभाव रहता है। इन्हीं विद्या का योग आत्मा से नहीं बन पाता। चंचल मना रह जाते हैं। प्रवाह में जीने को ही श्रेष्ठ मानते हैं। बुद्धिवादी आदतन नास्तिक बने रहना चाहते हैं। किसी न किसी दर्शन को लेकर अथवा किसी अन्य के विचारों पर उलझते ही नजर आते हैं। मनोरंजन, हंसी-मजाक से सर्वथा दूर, न शरीर को स्वस्थ रखने की चिन्ता होती है। स्वभाव से सदा रूक्ष बुद्धिमानों की कमी नहीं है। शरीर जीवियों को मन की कोमलता अनुभूतियों का कोई अनुभव ही नहीं होता। एक वर्ग स्वयं आत्मवादी मानकर जीता है। सहज जीवन से पूर्णतया अलग होता है।
:😊💐💐💐
क्रमशः------😊😊😊💐💐💐
दिन की सुरुआत कुछ अच्छी बातों के साथ करते हैं आओ आपका स्वागत है 😊😊😊💓🍨🍕🍦
जिसकी जीवन भर सबको तलाश रहती है
उसी को आनंद कहते हैं।
सम्पूर्ण सुख-समृद्धि का सूचक शब्द है।
और सृष्टि विस्तार का मूल कारक भी है।
आनन्द के बिना सृष्टि नहीं हो सकती।
आनन्द प्राप्त हो जाने के बाद
कुछ और पाने की कामना भी नहीं रह जाती।
आनन्द और सुख एक नहीं हैं।
आनन्द आत्मा का तत्व है
जबकि सुख-दु:ख मन के विषय हैं।
किसी भी दो व्यक्तियों के
सुख-दु:ख की परिभाषा एक नहीं हो सकती।
हर व्यक्ति का मन, कामना,
प्रकृति के आवरण भिन्न होते हैं।
अत: हर व्यक्ति का सुख-दु:ख भी
अलग-अलग होता है।
आनन्द स्थायी भाव है। Good morning ji
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लोग अनेक प्रकार के स्वभाव वाले होते हैं। एक शरीर जीवी इनका सुख शरीर के आगे नहीं जाता। व्यायाम-अखाड़े से लेकर सुख भोगने तक ही सीमित रहता है। इसके आगे इनका सुख-दु:ख भी नहीं है। मनोजीवी अपने मनस्तंभ में आसक्त रहता है। कहीं किसी कला में रमा रहता है या नृत्य, गायन, वादन में। ये तो देश-काल के अनुरूप बदलते रहते हैं। हर सभ्यता की अपनी कलाएं और मन रंजन होते हैं। इनके जीवन में सांस्कृतिक गंभीरता का अभाव रहता है। इन्हीं विद्या का योग आत्मा से नहीं बन पाता। चंचल मना रह जाते हैं। प्रवाह में जीने को ही श्रेष्ठ मानते हैं। बुद्धिवादी आदतन नास्तिक बने रहना चाहते हैं। किसी न किसी दर्शन को लेकर अथवा किसी अन्य के विचारों पर उलझते ही नजर आते हैं। मनोरंजन, हंसी-मजाक से सर्वथा दूर, न शरीर को स्वस्थ रखने की चिन्ता होती है। स्वभाव से सदा रूक्ष बुद्धिमानों की कमी नहीं है। शरीर जीवियों को मन की कोमलता अनुभूतियों का कोई अनुभव ही नहीं होता। एक वर्ग स्वयं आत्मवादी मानकर जीता है। सहज जीवन से पूर्णतया अलग होता है।
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