कुदरत भी इंसान जैसी जालिम होती है पल मे शांत पल मे रूप बदलती है जुल्म करती भी है और सहती भी नहीं धरती चलती है सूर्य के चारो ओर, धीरे घूमती है पर कभी भी रूकती नहीं इंसान कितना भी बुद्धिमान, होशियार बन जाए इसके आगे कोई टिकता नहीं ये फूलो का बिस्तर भी है और शोलो की आग भी सुन्दर प्रकृति भी है और मौत का सामान भी आगे जीवन चुनौती भरा है यहाँ अब की बार जीवन काटना आसान नहीं ये ऐसी आपदा है जो किसी को बक्शती नहीं ये किसी को जीवन देती है तो किसी को तूफा मे डुबोती भी, ये चाहे तो छुटकी बजा कर इंसान का नामोनिशा मिटा दे ये धरती माँ है इसे समझना ना मुमकिन है इस को सम्पूर्ण मानव जाति का कोटि कोटि नमन 🙏 पूजा उदेशी ✍️ कुदरत यानि धरती माँ,,,,, 🙏