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तारीफों के बाज़ार में सम्हल के चला कर ये दुनियां ह

तारीफों के बाज़ार में सम्हल के चला कर
ये दुनियां है ना इतना मचल के चला कर
ताड़ पे चढ़ाके सब अटकाते हैं खजूर पे
डोर सभ्यता का बस पकड़ के चला कर
तारीफों के बाज़ार.......
आसान है पदस्थ होना बने रहना मुश्किल 
धैर्य के कवच को जरा पहन के चला कर 
माया के इस नगर में बहुत मायावी हैं लोग
रहस्यों के पथ पर पथ बदल के चला कर
तारीफों के बाज़ार.......
सत्य वो नहीं जो तुम आखों से देखते हो
पगडंडियों में पांव को जकड़ के चला कर
परखने की जल्दीबाजी मुसीबत है "सूर्य"
नज़रों को अपने ज़रा मसल के चला कर
तारीफों के बाज़ार........

©R K Mishra " सूर्य "
  #तारीफों  Ashutosh Mishra Sethi Ji Kanchan Pathak भारत सोनी _इलेक्ट्रिशियन एक अजनबी