Read In Caption कभी जो मंगलसूत्र रिश्तों की बानी (प्रतिज्ञा) हुआ करते थे आज उन्हीं रिश्तों की आपबीती का मंजर हैं कभी घूँट घूँट कर के पी लिया गया वो खारा समंदर है जिसमे वफादारी का नमक नहीँ ज़िन्दगी के सबक का स्वाद ज़बान पे बाकी रह जाता अक्सर है। अब उसके काले मोती भी रिश्तों को अनहोनी से बचा नही पाते अक्सर आँखो के घेरे उसकी बदहाली और खोई हुई वकत पचा नहीँ पाते। कभी जो मंगलसूत्र रिश्तों की खुशनुमा और पाक सूरत हुआ करते थे आज फ़ख्त उनकी नाफ़रमान नीयत का अंजाम है - अदिती कपीश अग्रवाल कभी जो मंगलसूत्र रिश्तों की बानी (प्रतिज्ञा) हुआ करते थे आज उन्हीं रिश्तों की आपबीती का मंजर हैं कभी घूँट घूँट कर के पी लिया गया वो खारा समंदर है जिसमे वफादारी का नमक नहीँ ज़िन्दगी के सबक का स्वाद ज़बान पे बाकी रह जाता अक्सर है।