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सोचा तो बहुत, पर कुछ कर ना सके, वक़्त हाथों से फ

सोचा तो बहुत, 
पर कुछ कर ना सके, 
वक़्त हाथों से फिसलता जो रहा
रेत की तरह, 
हम पानी पर चलते रहे
पैरों के निशाँ पीछे छूटते गए, 
पानी भी तो अनोखा ही था
जिसे हम खुशी का समंदर समझते रहे
वही मौत का कुआं बन गया
पानी भी गलत ही नाम दिया उसे
वो तो आँखों से बहती हुई अश्रुधारा थी, 
जीवन की अतः पीड़ादायिनी थी, 
जिन्हें अपना समझते रहे
वो भी छूटते गए पीछे
बीते वक़्त की तरह
हुआ कत्ल कितनी दफ़ा
प्रेम का, विश्वास का
फिर भी चूं ना निकली
सदमे में डूबे इंसान की तरह।

©@happiness #selfwritten #selfcontention #love
सोचा तो बहुत, 
पर कुछ कर ना सके, 
वक़्त हाथों से फिसलता जो रहा
रेत की तरह, 
हम पानी पर चलते रहे
पैरों के निशाँ पीछे छूटते गए, 
पानी भी तो अनोखा ही था
जिसे हम खुशी का समंदर समझते रहे
वही मौत का कुआं बन गया
पानी भी गलत ही नाम दिया उसे
वो तो आँखों से बहती हुई अश्रुधारा थी, 
जीवन की अतः पीड़ादायिनी थी, 
जिन्हें अपना समझते रहे
वो भी छूटते गए पीछे
बीते वक़्त की तरह
हुआ कत्ल कितनी दफ़ा
प्रेम का, विश्वास का
फिर भी चूं ना निकली
सदमे में डूबे इंसान की तरह।

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