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तृष्णाओं के वशीभूत अचैतन्य मन की ऊहा- पोह को खींच

तृष्णाओं के वशीभूत 
अचैतन्य मन की ऊहा- पोह को
खींच ले जाती हूं बनारस के 
मणिकर्णिका घाट तक 
जहां नग्न मृत्यु नृत्य- मग्न 
औद्धत्यपूर्ण तांडव करती 
नश्वर जीवन के आडंबर को
अंतिम पड़ाव देती 
समस्त चिंताएं सुख दुःख 
अग्नि से पवित्र हो कुंदन बन 
आकाश में विलीन होती
बिना भेद भाव, ऊंच नीच
अहंकार, ईर्ष्या के विकारों से स्वतंत्र 
राजा रंक को एकमार्गी करते
परोक्ष अमर्त्य देवता...
आरंभ अंत को यथार्थ के
धरातल पर प्रत्यक्ष कर
संसार से अभिमुक्त आत्मा 
मूकदर्शक हो शरीर की राख को
प्रीति नदी में विसर्जित होते 
मोक्ष के अवसर को 
तुच्छ भोगों में 
उपेक्षित कर विलाप करती
अनिमेष देखती कभी
गैरिक- वसन और अघोरी को
अनेकों विक्षिप्त मन बन्धन- मुक्ति 
की इच्छा लिए क्रियाओं में लीन 
शून्य से शून्य तक की 
यात्रा का दृष्टा बन 
निस्तब्धता से भर मन लौटता 
संतोष का परम आनंद लेकर !!
-मोनिका 

#hindiwriting 
#life 
#selfreminder

©Ram Yadav #अध्यात्म
तृष्णाओं के वशीभूत 
अचैतन्य मन की ऊहा- पोह को
खींच ले जाती हूं बनारस के 
मणिकर्णिका घाट तक 
जहां नग्न मृत्यु नृत्य- मग्न 
औद्धत्यपूर्ण तांडव करती 
नश्वर जीवन के आडंबर को
अंतिम पड़ाव देती 
समस्त चिंताएं सुख दुःख 
अग्नि से पवित्र हो कुंदन बन 
आकाश में विलीन होती
बिना भेद भाव, ऊंच नीच
अहंकार, ईर्ष्या के विकारों से स्वतंत्र 
राजा रंक को एकमार्गी करते
परोक्ष अमर्त्य देवता...
आरंभ अंत को यथार्थ के
धरातल पर प्रत्यक्ष कर
संसार से अभिमुक्त आत्मा 
मूकदर्शक हो शरीर की राख को
प्रीति नदी में विसर्जित होते 
मोक्ष के अवसर को 
तुच्छ भोगों में 
उपेक्षित कर विलाप करती
अनिमेष देखती कभी
गैरिक- वसन और अघोरी को
अनेकों विक्षिप्त मन बन्धन- मुक्ति 
की इच्छा लिए क्रियाओं में लीन 
शून्य से शून्य तक की 
यात्रा का दृष्टा बन 
निस्तब्धता से भर मन लौटता 
संतोष का परम आनंद लेकर !!
-मोनिका 

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ramyadav6417

Ram Yadav

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