दश्त के दश्त मकान हुए जाते है, शहर के शहर वीरान हुए जाते है। हम उनसे जख्मों का गिला कैसे करते, जो मेरे तेज़ साँसों से परेशान हुए जाते है। रेत की सीपियां मिलने लगी है पानी में, क्या दरिया भी अब रेगिस्तान हुए जाते है। तिश्नगी फ़ैली है इस कदर ज़माने में अब, आँखें बंद करके अंज़ाम से अंजान हुए जाते है। (दश्त- जंगल) #अंज़ाम_से_अंजान #yourquotedidi #yourquotebaba #hkkhindipoetry #harsh_reality_of_life #collab_yqdidi #आशु_की_कलम_से