फुल बन ही रहा था, कली तोड दी मैने । ईश्क पुरा किया, शादी अधुरी चोड दी मैने । मेरा फुल ही था, जो धुल कहलाया । जायज माँ- बाप का नाजायज औलाद कहलाया ।। लड्डपन के उमर मे ईश्क कर बैठा था, ना जाने कैसी भूल कर बैठा था। बाप का गला तो मै घोट चुका, ममता को भी मजबूर किया। उस नादान को खूले आसमान के निचे छोड दिया। ईश्क तो हमने जायज नही किया, और नाजायज़ उसे बोला जारा है। भूल तो हमने कि, जो फुल को खिलने ना दिया। फिर भी न जाने धूल का फुल वह कहलारा।।। -------------Tohid mulla धूल का फूल