टूट गई सिसें की तरह मैं अब जुड़ न पाऊंगी कभी सीने में जख्म हैं बहुत गहरा इन जख्मों का मरहम किसी को बना न पाऊंगी कभी दिल टूटा मेरा उसका साथ भी छूटा एहसास जो प्यार का था शायद वो भी झूठा निकला अब तन्हाई को गले लगा न पाऊंगी कभी जुड़ गई उससे मैं अपना मान कर अब दिल से किसी को अपना न पाऊंगी कभी बिन मौसम बरसात अाई न जाने कहां से जो मेरे लिए सवाल बन गई अब आंखों में किसी और के तस्वीर को छुपा न पाऊंगी कभी दर्द मुझे नहीं मेरे दिल को मिला है और दिल कई अरसो से बीमार पड़ा है कैसे सह पाएगा गम को जो दिल के करीब रहा करते थे दर्द उनसे बेहिसाब मिला है धुंधला दिखाई पड़ रहा मेरा अस्तित्व कोरे कागज़ को भी मैं रंगीन न कर पाऊंगी तुझे जाना है तो जा है ये तेरी मर्ज़ी मान लूंगी मैं था तेरा इश्क़ फर्जी ,,,,,,,,,,, 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀 ना तुम रहे और न तेरी दोस्ती बस अपनी यादों के बरसात दे गए