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PRAHAR भीतर से उठ रही चितकार फट गई नसे,हो रहा

PRAHAR 

भीतर से उठ रही  चितकार 
फट गई नसे,हो रहा रक्त स्राव,

आँखों में सूख गए अँशरु
मुख से कुछ शब्द नहीं,

छा गया तम
दिगंत हो गई वीरान,

खो गया महत्वपूर्ण
नहीं रहे निर्मल,नील नलिन

बिंध गई आत्मा
स्वयं का स्वयं पर प्राहर,

रो रहा मूक जीव
नैश वन में,

किसी को सुनाई नहीं देता
भीतर का हाहाकार l


तारा aparna sharma #poem #prahar #coronavirus #bigpoet
PRAHAR 

भीतर से उठ रही  चितकार 
फट गई नसे,हो रहा रक्त स्राव,

आँखों में सूख गए अँशरु
मुख से कुछ शब्द नहीं,

छा गया तम
दिगंत हो गई वीरान,

खो गया महत्वपूर्ण
नहीं रहे निर्मल,नील नलिन

बिंध गई आत्मा
स्वयं का स्वयं पर प्राहर,

रो रहा मूक जीव
नैश वन में,

किसी को सुनाई नहीं देता
भीतर का हाहाकार l


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