वो कागज़ की कश्ती, वो बचपन की मस्ती, वो गुड़िया वो हाथी, वो बचपन के साथी, वो पल में झगड़ना, वो पल में गले लगाना, याद आ रहा है बचपन का बचपना।। ना जाति ना पैसे, हम हंसतेथे ऐसे, जैसे मिल गया हो हमें, कारू का खजाना.. याद आ रहा है बचपन का बचपना।। वो मम्मी का आंचल, वो पापा का दाढ़ी, वो भैया का , दौड़ा दौड़ा के मारना,😁 याद आ रहा है बचपन का बचपना।। नए कपड़े पहनने पर खुद में इतराना, बालू से गिट्टी, से खाना बनाना, पत्तों की बनती थी हमारी रोटी, बनते थे अम्मा भी ,बनते थे बेटी, अब कहा गा पाते है, रिश्तों का तराना, याद आ रहा वो बचपन वो बचपना।। बुखार होने पर वो साबूदाना खाना, होम्योपैथी की मीठी गोली का दाना, खाना खाने में कितने नखरे दिखाना, मां का आंखे भर भर के जी भर प्यार लुटाना, याद आ रहा है वो बचपन वो बचपना।। नानी घर जाएंगे तो नए कपड़े मिलेंगे वो मौसी,वी मामा वो नाना का गाना वो हमारी पसंद का ही खाना पकाना आते समय दस रुपए का नोट पकड़ाना लगता था पा लिया जन्नत पा लिया ठिकाना उफ्फ..... काश कि लौट आए वो बचपन और बचपना........, ©divya कोई लौटा दे वो बचपन.....