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धूप सी पिघलती शाम हूं कलियों सी खिलती रागिनी हूं ज

धूप सी पिघलती शाम हूं
कलियों सी खिलती रागिनी हूं
जिसमिल सी आंखों का काजल हूं
दोपहर में बीते समय सा सुकून हूं
कानों में सबके मैं हल्की सी आवाज हूं
मैं हर जगह न होकर भी 
हर पल में मौजूद हूं
चेहरे से मेरी रूह तक कैसे पहुचोगे
मैं कोई तितली कहां 
जिसे तुम आसानी से पकड़ सकोगे 
यूंही कहां मेरे अस्तित्व को छू पाओगे
मैं साक्षी हूं मेरे नाम में ही कहीं रम जाओगे।।

©Sakshi Tomar आज समझाऊं अपने नाम का अर्थ

#Sakshi #Kuchbatein✍️✍️
धूप सी पिघलती शाम हूं
कलियों सी खिलती रागिनी हूं
जिसमिल सी आंखों का काजल हूं
दोपहर में बीते समय सा सुकून हूं
कानों में सबके मैं हल्की सी आवाज हूं
मैं हर जगह न होकर भी 
हर पल में मौजूद हूं
चेहरे से मेरी रूह तक कैसे पहुचोगे
मैं कोई तितली कहां 
जिसे तुम आसानी से पकड़ सकोगे 
यूंही कहां मेरे अस्तित्व को छू पाओगे
मैं साक्षी हूं मेरे नाम में ही कहीं रम जाओगे।।

©Sakshi Tomar आज समझाऊं अपने नाम का अर्थ

#Sakshi #Kuchbatein✍️✍️
sakshitomar6093

Sakshi Tomar

New Creator

आज समझाऊं अपने नाम का अर्थ #Sakshi Kuchbatein✍️✍️ #Poetry