White धारण हे नदियों! तू स्वर्णिम से निकल, सागर को पा लेती हो। भला कोई तुंगता से, अवरोहित होता है ? आह! इतने आघात नित बिखरते रोम तेरे। भला अस्तित्व को अपने, विलीन करने कौन आगे बढ़ता है ? क्या यहीं प्रारब्ध तेरा मैलों को समेट बढ़ने का। भला वस्त्र नए धारण कर, उसपे कालिख लगवाने कौन बढ़ता हैं? ©Saurav life #sad_qoute #sauravlife