सन 1880 में वो धरती पर आए थे लमही की मिट्टी को धन्य बनाये थे कलम के दम पर दुनियाभर में छाए थे काशी का परचम खुलकर लहराए थे वो 'पूस की रात' में 'दो बैलों की कथा' लिखे वो 'ईदगाह' में हामिद का चिमटा लिक्खे वो कफ़न, ग़बन और 'सवा सेर गेहूँ' लिखकर 'बूढ़ी काकी' में जनमानस की व्यथा लिखे गोदान लिखे, वरदान लिखे, बलिदान लिखे आधार लिखे, उद्धार लिखे, धिक्कार लिखे वो रंगभूमि, वो कर्मभूमि, अधिकार लिखे चमत्कार लिखे, सत्याग्रह और शिकार लिखे वो गिला लिखे, लैला लिक्खें और नशा लिक्खे चोरी, लांछन, कैदी लिखकर के क्षमा लिक्खे दफ़्तर लिक्खे, फिर ग़बन, और इस्तीफ़ा लिक्खे वो शुद्र लिखे और ठाकुर जी का कुआं लिखे 'बेटों वाली विधवा' लिक्खे और 'माँ' लिक्खे निर्मला , प्रतिज्ञा , प्रेमाश्रय , प्रेमा लिक्खे कितना गिनवाऊँ प्रेमचंद क्या क्या लिक्खे 'पंच परमेश्वर' और 'नमक का दारोगा' लिक्खे उस उपन्यास सम्राट को चलो नमन कर लें स्मृतियों से सज्जित यह पूर्ण चमन कर लें --प्रशान्त मिश्रा प्रेमचंद