Nojoto: Largest Storytelling Platform

निकल रहा है सब कुछ, रेत सा सब फिसल रहा हैं मुट्ठी

निकल रहा है सब कुछ, रेत सा सब फिसल रहा हैं
मुट्ठी बंद करूँ मैं जैसे भी, वैसे ही सब छुट रहा हैं
परिवर्तन नियम हैं कुदरत का, नियति का सब खेल हैं
छोटे छोटे बंधनों की 
अब अहसासों से बंधी बस एक डोर हैं
गुजरा समय, गुजर गया
धीरे धीरे चलना था, तेज रफ्तार से चल गया
खोली मुट्ठी कुछ मिला नहीं
खाली हाथ फिर से खाली रह गया
दिल रुक गया हैं यहीं, मन भी इस ओर ही हैं
जाए कहीं भी जिंदगी मेरी, आँखें थम गयी यहीं मेरी
मरजी किसकी चली कहाँ हैं, अंदर आँसू बाहर हंसी हैं

©Nisha Bhargava |di√y∆|
  #बदलती जिन्दगी

#बदलती जिन्दगी #Poetry

117 Views