अपने अर्श की ठंडक में एक शोख़ सीमतन,सिमट रही थी अभी झील के किनारे, बाद-ए-सबा चल रही थी अभी,ख्वाबे-मर्गे-तन्हाई में वह अपना फ़लसफ़ा खो रहे थे अभी, खनकता हुआ जिस्म,शबे-गम की तीरगी में रो रहा था अभी मौजे- खतर के लव्ज़ों में तुम्हारी तसव्वर हो रही थी अभी शोख़सीमतन