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जीवन का पाठ्य मानव शरीर विविधता का अनुपम वरदान है

जीवन का पाठ्य मानव शरीर विविधता का अनुपम वरदान है साथ ही इसे भूलोक की सर्वश्रेष्ठ रचना भी माना गया है शरीर केवल आस्था मंजा का पिंड मात्र नहीं है इसकी संरचना में विज्ञान और अध्यात्म का भी सामान्य फल है जो सदैव इसकी क्रियाशीलता में दृष्टिगोचर होता है आत्म तत्व इस शरीर का अधिवक्ता है जिसके अभाव में यह मात्र है 10 दिशाओं चित्र मन और बुद्धि इसके संचालक हैं इसके अतिरिक्त विवेक शक्ति का उपहार केवल मनुष्य को प्रदान किया गया जो इससे अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ बनाता है सत्य और असत्य का ज्ञान कराने से ही शतपथ का प्रादेशिक भी है प्यार दया करुणा सद्भाव और परोपकार जैसे सात्विक भाव इस पिंड की ऊर्जा में वास्तविक क्षेत्र है जो केवल इसकी सारणी की ही नहीं मानसिक शक्ति को भी बढ़ाते हैं सरिता रोगों से लड़ने की ताकत देते हैं दैनिक आहार के साथ यह सात्विक भाव मानव जीवन यात्रा के आवश्यक पाते हैं यही मनुष्य की स्वच्छता दिन आचार्य का निर्माण भी करते हैं दुर्भाग्य से शरीर विज्ञान का अध्ययन करते समय इसके आध्यात्मिक पक्ष को कम समझा गया है आध्यात्मिक को समझे बिना शरीर विज्ञान को नहीं समझ सकता है और ना शरीर को स्वस्थ रख सकता है इसके लिए मानव जीवन का उद्देश्य समझना जरूरी है मानवता की सेवा मानव जीवन का प्रथम और अंतिम उद्देश्य है जिसकी प्राप्ति इन्हीं सात्विक भाव से होती है जीवन का वास्तविक सुख और आनंद भी इन्हीं से प्राप्त किया जा सकता है यही मनुष्य की लौकिक व आध्यात्मिक यात्रा का मानव शरीर को सभी साधनों का दाम और मुक्ति का द्वार का है जो मानवता की सेवा से ही संभव है क्योंकि मन सभी क्रियाओं का अधिष्ठान है अंत यह भी तभी संभव है जब मन शिव संकल्प लें हो क्योंकि यहां लोक कल्याणकारी चिंतन का आधार है यही मानव जीवन का पात्र भी

©Ek villain #Givan 

#Bicycle
जीवन का पाठ्य मानव शरीर विविधता का अनुपम वरदान है साथ ही इसे भूलोक की सर्वश्रेष्ठ रचना भी माना गया है शरीर केवल आस्था मंजा का पिंड मात्र नहीं है इसकी संरचना में विज्ञान और अध्यात्म का भी सामान्य फल है जो सदैव इसकी क्रियाशीलता में दृष्टिगोचर होता है आत्म तत्व इस शरीर का अधिवक्ता है जिसके अभाव में यह मात्र है 10 दिशाओं चित्र मन और बुद्धि इसके संचालक हैं इसके अतिरिक्त विवेक शक्ति का उपहार केवल मनुष्य को प्रदान किया गया जो इससे अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ बनाता है सत्य और असत्य का ज्ञान कराने से ही शतपथ का प्रादेशिक भी है प्यार दया करुणा सद्भाव और परोपकार जैसे सात्विक भाव इस पिंड की ऊर्जा में वास्तविक क्षेत्र है जो केवल इसकी सारणी की ही नहीं मानसिक शक्ति को भी बढ़ाते हैं सरिता रोगों से लड़ने की ताकत देते हैं दैनिक आहार के साथ यह सात्विक भाव मानव जीवन यात्रा के आवश्यक पाते हैं यही मनुष्य की स्वच्छता दिन आचार्य का निर्माण भी करते हैं दुर्भाग्य से शरीर विज्ञान का अध्ययन करते समय इसके आध्यात्मिक पक्ष को कम समझा गया है आध्यात्मिक को समझे बिना शरीर विज्ञान को नहीं समझ सकता है और ना शरीर को स्वस्थ रख सकता है इसके लिए मानव जीवन का उद्देश्य समझना जरूरी है मानवता की सेवा मानव जीवन का प्रथम और अंतिम उद्देश्य है जिसकी प्राप्ति इन्हीं सात्विक भाव से होती है जीवन का वास्तविक सुख और आनंद भी इन्हीं से प्राप्त किया जा सकता है यही मनुष्य की लौकिक व आध्यात्मिक यात्रा का मानव शरीर को सभी साधनों का दाम और मुक्ति का द्वार का है जो मानवता की सेवा से ही संभव है क्योंकि मन सभी क्रियाओं का अधिष्ठान है अंत यह भी तभी संभव है जब मन शिव संकल्प लें हो क्योंकि यहां लोक कल्याणकारी चिंतन का आधार है यही मानव जीवन का पात्र भी

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