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इंदिरा और आपातकाल (Read in caption) 25 जून 1975 भा

इंदिरा और आपातकाल
(Read in caption) 25 जून 1975 भारत की राजनीति काल का सबसे घिनौना दिन। उस रात को कुछ ऐसा हुआ था जो न तो इसके पहले कभी हुआ था और ना ही इसके बाद आज तक। इसी तारीख को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा आंतरिक अशांति के नाम पर आपातकाल लगाया गया था जो कि 21 मार्च 1977 तक चला। इस दौरान नागरिकों के न जाने कितने ही अधिकारों का बेरहमी से हनन किया गया, कितनी सुविधाएं उनसे छीनी गई, कितनों को जेल में रखा गया और भी ना जाने क्या-क्या। मैं भी इस घटना का समर्थक बिल्कुल नहीं हूं, बल्कि विरोधी हूं। 

मगर क्या इतनी बड़ी घटना सिर्फ एक रात का अंजाम हो सकती है? बिल्कुल नहीं। 

तो इस घटना की शुरुआत कहीं ना कहीं 1964 में जवाहरलाल नेहरु जी की मृत्यु से ही हो जाती है क्योंकि नेहरू जी की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार मोरारजी देसाई जी थे, मगर उनका रवैया हर किसी को मालूम था कि यह सिर्फ अपनी सुनने में यकीन रखते हैं और शायद इसी कारण से तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज जी ने मोरारजी की जगह लाल बहादुर शास्त्री जी को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करवाई। 1965 भारत-पाक युद्ध में शास्त्री जी खूब निखर कर सामने आए और कामराज साहब का फैसला सही साबित हुआ लेकिन 1966 में ताशकंद में हुई शास्त्री जी की संदिग्ध मौत के बाद सवाल फिर वही था कि अगला प्रधानमंत्री कौन? लाइन में इस बार भी सबसे आगे मोरारजी देसाई ही थे। उस समय दुबारा गुलजारी लाल नंदा जी को दूसरी बार टेंपरेरी प्रधानमंत्री बनाया गया, पहली बार नेहरू जी की मृत्यु के समय।
अब इस बार मोरारजी अड़े हुए थे कि प्रधानमंत्री तो वही बनेंगे और इसीलिए प्रधानमंत्री पद के लिए वोटिंग हुई और उसमें इंदिरा जीत गई। इसके बाद कांग्रेस दो भागों में विभाजित हो गई, एक में मोरारजी और उनके कुछ सदस्य थे और दूसरे में इंदिरा। कांग्रेस 1967 का चुनाव तो जीत गई थी मगर इस वक्त कांग्रेस के पास वो बादशाहत नहीं थी जो नेहरू जी के समय में थी। कांग्रेस छः राज्यों में अपनी सत्ता गंवा चुकी थी। मगर विभाजन के बाद भी अन्य पार्टियों के समर्थन से कांग्रेस ने अपना बहुमत बनाए रखा। यह सब बताने के पीछे मेरा सिर्फ एक मकसद था कि आप लोग जाने कि आखिर मोरारजी देसाई और इंदिरा गांधी का रिश्ता कैसा था।
इसके बाद अपने इस कार्यकाल में इंदिरा ने गरीबी हटाने के लिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स पर प्रतिबंध, ज़मीदारी प्रथा को पूरी तरह खत्म करने समेत कई मामलों पर भरसक प्रयास किए मगर कभी संविधान आड़े आया तो कभी पार्टी की मजबूती। 
1971 में इंदिरा ने 1972 में होने वाले चुनावों को 1 वर्ष पहले करवाया और मौजूदा 518 सीटों में से 352 सीटें जीतकर विशाल बहुमत से अपनी सरकार बनाई। उसी दौरान इंदिरा ने USSR के साथ एक मैत्री संधि करी जिसके कारण भारत कि विश्व स्तर पर पकड़ काफी मजबूत हुई। 1971 में ही भारत पाकिस्तान युद्ध हुआ और इसी युद्ध में बांग्लादेश का विभाजन भी हुआ। 16 दिसंबर 1971 को भारत युद्ध में विजय हुआ और यह युद्ध जीते ही इंदिरा पूरे देश में इस कदर मशहूर हो गई कि क्या ही कहे! हर जुबान पर उनका चर्चा था।
इंदिरा और आपातकाल
(Read in caption) 25 जून 1975 भारत की राजनीति काल का सबसे घिनौना दिन। उस रात को कुछ ऐसा हुआ था जो न तो इसके पहले कभी हुआ था और ना ही इसके बाद आज तक। इसी तारीख को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा आंतरिक अशांति के नाम पर आपातकाल लगाया गया था जो कि 21 मार्च 1977 तक चला। इस दौरान नागरिकों के न जाने कितने ही अधिकारों का बेरहमी से हनन किया गया, कितनी सुविधाएं उनसे छीनी गई, कितनों को जेल में रखा गया और भी ना जाने क्या-क्या। मैं भी इस घटना का समर्थक बिल्कुल नहीं हूं, बल्कि विरोधी हूं। 

मगर क्या इतनी बड़ी घटना सिर्फ एक रात का अंजाम हो सकती है? बिल्कुल नहीं। 

तो इस घटना की शुरुआत कहीं ना कहीं 1964 में जवाहरलाल नेहरु जी की मृत्यु से ही हो जाती है क्योंकि नेहरू जी की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार मोरारजी देसाई जी थे, मगर उनका रवैया हर किसी को मालूम था कि यह सिर्फ अपनी सुनने में यकीन रखते हैं और शायद इसी कारण से तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज जी ने मोरारजी की जगह लाल बहादुर शास्त्री जी को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करवाई। 1965 भारत-पाक युद्ध में शास्त्री जी खूब निखर कर सामने आए और कामराज साहब का फैसला सही साबित हुआ लेकिन 1966 में ताशकंद में हुई शास्त्री जी की संदिग्ध मौत के बाद सवाल फिर वही था कि अगला प्रधानमंत्री कौन? लाइन में इस बार भी सबसे आगे मोरारजी देसाई ही थे। उस समय दुबारा गुलजारी लाल नंदा जी को दूसरी बार टेंपरेरी प्रधानमंत्री बनाया गया, पहली बार नेहरू जी की मृत्यु के समय।
अब इस बार मोरारजी अड़े हुए थे कि प्रधानमंत्री तो वही बनेंगे और इसीलिए प्रधानमंत्री पद के लिए वोटिंग हुई और उसमें इंदिरा जीत गई। इसके बाद कांग्रेस दो भागों में विभाजित हो गई, एक में मोरारजी और उनके कुछ सदस्य थे और दूसरे में इंदिरा। कांग्रेस 1967 का चुनाव तो जीत गई थी मगर इस वक्त कांग्रेस के पास वो बादशाहत नहीं थी जो नेहरू जी के समय में थी। कांग्रेस छः राज्यों में अपनी सत्ता गंवा चुकी थी। मगर विभाजन के बाद भी अन्य पार्टियों के समर्थन से कांग्रेस ने अपना बहुमत बनाए रखा। यह सब बताने के पीछे मेरा सिर्फ एक मकसद था कि आप लोग जाने कि आखिर मोरारजी देसाई और इंदिरा गांधी का रिश्ता कैसा था।
इसके बाद अपने इस कार्यकाल में इंदिरा ने गरीबी हटाने के लिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स पर प्रतिबंध, ज़मीदारी प्रथा को पूरी तरह खत्म करने समेत कई मामलों पर भरसक प्रयास किए मगर कभी संविधान आड़े आया तो कभी पार्टी की मजबूती। 
1971 में इंदिरा ने 1972 में होने वाले चुनावों को 1 वर्ष पहले करवाया और मौजूदा 518 सीटों में से 352 सीटें जीतकर विशाल बहुमत से अपनी सरकार बनाई। उसी दौरान इंदिरा ने USSR के साथ एक मैत्री संधि करी जिसके कारण भारत कि विश्व स्तर पर पकड़ काफी मजबूत हुई। 1971 में ही भारत पाकिस्तान युद्ध हुआ और इसी युद्ध में बांग्लादेश का विभाजन भी हुआ। 16 दिसंबर 1971 को भारत युद्ध में विजय हुआ और यह युद्ध जीते ही इंदिरा पूरे देश में इस कदर मशहूर हो गई कि क्या ही कहे! हर जुबान पर उनका चर्चा था।

25 जून 1975 भारत की राजनीति काल का सबसे घिनौना दिन। उस रात को कुछ ऐसा हुआ था जो न तो इसके पहले कभी हुआ था और ना ही इसके बाद आज तक। इसी तारीख को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा आंतरिक अशांति के नाम पर आपातकाल लगाया गया था जो कि 21 मार्च 1977 तक चला। इस दौरान नागरिकों के न जाने कितने ही अधिकारों का बेरहमी से हनन किया गया, कितनी सुविधाएं उनसे छीनी गई, कितनों को जेल में रखा गया और भी ना जाने क्या-क्या। मैं भी इस घटना का समर्थक बिल्कुल नहीं हूं, बल्कि विरोधी हूं। मगर क्या इतनी बड़ी घटना सिर्फ एक रात का अंजाम हो सकती है? बिल्कुल नहीं। तो इस घटना की शुरुआत कहीं ना कहीं 1964 में जवाहरलाल नेहरु जी की मृत्यु से ही हो जाती है क्योंकि नेहरू जी की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार मोरारजी देसाई जी थे, मगर उनका रवैया हर किसी को मालूम था कि यह सिर्फ अपनी सुनने में यकीन रखते हैं और शायद इसी कारण से तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज जी ने मोरारजी की जगह लाल बहादुर शास्त्री जी को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करवाई। 1965 भारत-पाक युद्ध में शास्त्री जी खूब निखर कर सामने आए और कामराज साहब का फैसला सही साबित हुआ लेकिन 1966 में ताशकंद में हुई शास्त्री जी की संदिग्ध मौत के बाद सवाल फिर वही था कि अगला प्रधानमंत्री कौन? लाइन में इस बार भी सबसे आगे मोरारजी देसाई ही थे। उस समय दुबारा गुलजारी लाल नंदा जी को दूसरी बार टेंपरेरी प्रधानमंत्री बनाया गया, पहली बार नेहरू जी की मृत्यु के समय। अब इस बार मोरारजी अड़े हुए थे कि प्रधानमंत्री तो वही बनेंगे और इसीलिए प्रधानमंत्री पद के लिए वोटिंग हुई और उसमें इंदिरा जीत गई। इसके बाद कांग्रेस दो भागों में विभाजित हो गई, एक में मोरारजी और उनके कुछ सदस्य थे और दूसरे में इंदिरा। कांग्रेस 1967 का चुनाव तो जीत गई थी मगर इस वक्त कांग्रेस के पास वो बादशाहत नहीं थी जो नेहरू जी के समय में थी। कांग्रेस छः राज्यों में अपनी सत्ता गंवा चुकी थी। मगर विभाजन के बाद भी अन्य पार्टियों के समर्थन से कांग्रेस ने अपना बहुमत बनाए रखा। यह सब बताने के पीछे मेरा सिर्फ एक मकसद था कि आप लोग जाने कि आखिर मोरारजी देसाई और इंदिरा गांधी का रिश्ता कैसा था। इसके बाद अपने इस कार्यकाल में इंदिरा ने गरीबी हटाने के लिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स पर प्रतिबंध, ज़मीदारी प्रथा को पूरी तरह खत्म करने समेत कई मामलों पर भरसक प्रयास किए मगर कभी संविधान आड़े आया तो कभी पार्टी की मजबूती। 1971 में इंदिरा ने 1972 में होने वाले चुनावों को 1 वर्ष पहले करवाया और मौजूदा 518 सीटों में से 352 सीटें जीतकर विशाल बहुमत से अपनी सरकार बनाई। उसी दौरान इंदिरा ने USSR के साथ एक मैत्री संधि करी जिसके कारण भारत कि विश्व स्तर पर पकड़ काफी मजबूत हुई। 1971 में ही भारत पाकिस्तान युद्ध हुआ और इसी युद्ध में बांग्लादेश का विभाजन भी हुआ। 16 दिसंबर 1971 को भारत युद्ध में विजय हुआ और यह युद्ध जीते ही इंदिरा पूरे देश में इस कदर मशहूर हो गई कि क्या ही कहे! हर जुबान पर उनका चर्चा था। #Reality #yourquote #yqbaba #yqdidi #yqhindi #Emergency