मन
मन ही मन रो कर
खुद के मन को खुद समझा लेती हूं।
जिंदगी के उतार-चढ़ाव को बस यूं ही मन ही मन को समझा लेती हूं।
क्या जिंदगी इसी को कहते हैं अपनों को छोड़ो अपने वजूद को छोड़ो अपने सपनों को छोड़ो
क्या क्या छोड़ें बस मन ही मन रो खुद को समझा लेती हूं।
किसके। दिल का दर्द किसने देखा है। देखा है तो बस चेहरा देखा है।
अब तो भूल गए अपनी भी कोई पहचान थी मन ही मन रो अपनी पहचान बना लेती हूं।