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अक्सर अँधेरे से मैं डरती थी डरती थी ऊस आवाज से ज

अक्सर अँधेरे से मैं डरती थी
 डरती थी ऊस आवाज से 
जो सरक सरक मेरे कानों में पहुंचती थी
सोचती थी पीछे मुड़कर नहीं देखूंगी
लेकिन आवाज के कारण आगे भी जा नहीं सकती थी
मूडकर देख लिया तो शायद ना जाने क्या हो जाएगा
हर पल सोचती रहती 
एक दिन साहस किया 
पीछे मुड़कर देखा 
वो आवाज अब भी गूंज रही थी 
वो आवाज कहीं से नहीं बल्कि 
मेरे अंदर का डर था
जो मुझे आगे बढ़ने से रोकता था 
इसलिए दोस्तो अपने अंदर का डर मारो फिर तुम आगे बढ़ सकते हो  
क्योंकि डर के आगे जीत है

©Nëélåm Råñï
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 gyanendra pandey जनकवि शंकर पाल( बुन्देली) खामोशी और दस्तक Anshu writer SIDDHARTH.SHENDE.sid