बिन बोले मोहब्बत करता रहता हूँ | तू जग का उजाला , मैं जुगनू भी न , पर जलता रहता हूँ | मैं कोरी किताब सा , तू मुर्ख-सी पढ़ती रहती है | तू ईद के चाँद सी , राह तेरी मैं ताकता रहता हूँ | मैं वो भँवरा , जो बिन बोले बस फूलों को चखता रहता हूँ | तू शांत शाम सी , मैं बूंदो सा गिरता रहता हुँ | तू वो गुलाब जिसका कांटा भी , मैं हंस कर सहता रहता हूँ | हूँ तो खिलाडी लूडो का पर , रूठने -मनाने के इस खेल से डरता हूँ | तेरे हां या ना के झमेले से , मैं खुद को बचाता रहता हूँ | जज्बातों को कहने से , बस एतराज़ बरतता हूँ | क्योंकि मैं तो बस , बिन बोले मुहब्बत करता रहता हूँ | - सुखदेव (7728056326 ) प्रेम-रस