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सूखे पत्तों सी तेरी जिंदगी सूखी ही रह जाती, वो तो

सूखे पत्तों सी तेरी जिंदगी सूखी ही रह जाती, 
वो तो हम थे जो अपने इश्क़ से सींचते रहे। 

कलम उठाने में कंपकंपाते थे जो हाथ, 
आज बेफाई की दास्तान क्या खूब लिख गये। 

बहार में भी झड़ते थे जिस दरख़्त के पत्ते, 
ये मेरे खून का कमाल था कि वो पतझड़ में भी हरे हो गये।। 

#अंकित सारस्वत# #सूखे पत्ते
सूखे पत्तों सी तेरी जिंदगी सूखी ही रह जाती, 
वो तो हम थे जो अपने इश्क़ से सींचते रहे। 

कलम उठाने में कंपकंपाते थे जो हाथ, 
आज बेफाई की दास्तान क्या खूब लिख गये। 

बहार में भी झड़ते थे जिस दरख़्त के पत्ते, 
ये मेरे खून का कमाल था कि वो पतझड़ में भी हरे हो गये।। 

#अंकित सारस्वत# #सूखे पत्ते