"हर औरत का अहसास" आज बैठी हूं कुछ किस्से सुलझाने अपनी जिंदगी के कुछ हिस्से सुलझाने रिश्ते निभाते निभाते एक अरसा हो गया अपने आप को हर रिश्ते की अहमियत समझाने बेटी हूं, पर मां बाप पर अधिकार नहीं जैसे उनसे मुझे कोई सरोकार नहीं अपनी भावनाएं बदल लूं समय के साथ उनकी बेटी हूं कोई सरकार नहीं। एक पत्नी हूं, बहु हूं शादी के बाद अनगिनत नए रिश्ते मिले हैं सौगात क्यों मुझे कोई बांधना चाहता है जैसे कोई पंछी कैद हो आजादी के बाद। अब तो आदत हो गई थी बंध जाने की आहट मिल चुकी थी नन्ही जान के आने की सबसे खूबसूरत मौसम था वो मेरे जीवन का वो अहसास ही अनोखा था तन मन का। यूं ही बीत गया जीवन अब सोचती हूं इन सब रिश्तों में अपना अस्तित्व खोजती हूं कहने को मैं हर किसी के जीवन का हिस्सा हूं होठों पर जो कभी न आए मैं वो किस्सा हूं।। ©Ankur Mishra "हर औरत का अहसास" आज बैठी हूं कुछ किस्से सुलझाने अपनी जिंदगी के कुछ हिस्से सुलझाने रिश्ते निभाते निभाते एक अरसा हो गया अपने आप को हर रिश्ते की अहमियत समझाने बेटी हूं, पर मां बाप पर अधिकार नहीं