रात भी फिसलेगी जब क्या करेगी चाँदनी, अमावस रुख़ लेगी तब क्या करेगी चाँदनी, चाँद से है ख़ूबसूरत हिज्र में कुछ स्मृतियाँ, जो उल्फ़त बढ़ चलेगी क्या करेगी चाँदनी, सरहद से आ रहा है शोर कुछ अजीब सा, गर कोई आशा बुझेगी क्या करेगी चाँदनी, चार अंसों पर चली इक जा रही है पालकी, जो वो मरघट पे रुकेगी क्या करेगी चाँदनी, बाहरी ज्वाला ख़त्म की आब से हिजाब से, आग जब भीतर लगेगी क्या करेगी चाँदनी, बोलियों से भी निकलता जा रहा है ये लहू, जो वो सीने को छलेगी क्या करेगी चाँदनी, हर बशर को हर बशर की बात से हैं रंजिशें, अब 'चैतन्य' क्या करेगी क्या करेगी चाँदनी ! चाँद से है ख़ूबसूरत भूख में दो रोटियाँ, कोई बच्चा जब मरेगा क्या करेगी चाँदनी! — हुल्लड़ मुरादाबादी हिंदी हमारी मातृभाषा है, मात्र एक भाषा नहीं! विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ 🎉