Nojoto: Largest Storytelling Platform

गंगा पवित्र पावन गंगा की धारा अविरल बहती जाती है

गंगा

पवित्र पावन गंगा की धारा अविरल बहती जाती है
धोती है ये पाप सभी के  पतित पावनी कहलाती है
हर्षित पुलकित होती धरा देख उतरती गंगा को
देकर नव जीवन प्राणी को प्राण दायिनी कहलाती है

जन्म से मृत्यु मृत्यु से जीवन बस चलता जाता है
आता है जो शरण गंगा की इस जीवन से तर जाता है
चाहे हो भगीरथ चाहे मुनीश्वर जटा में शोभा पाती है
निकल कमंडल से बह्मा के नरक को भी स्वर्ग बनाती है

हो जंगल या मैदान कहीं पहाड़ से भी टकराती जाती है
उतर हिय में सभी जीव जन्तु के तृप्त उन्हें कर जाती है
हरिद्वार हो या प्रयाग काशी तीर्थ बने सब दर्शन अभिलाषी 
कर स्नान गंगासागर में सबको मुक्ति मिल जाती है

देवनदी ये हिमगिरि की बेटी तुलसी के गीतों में बहती है
यही है यमुना यही है सरयू जो राम कथा भी गाती है
अमृत का भण्डार भरे विष का अमृत पान करे 
ये गंगा है निश्चल अविरल पाप सभी के धोती जाती है

वसुधा को सींचे कण कण में धरा में समाती जाती है
हर लहर अलबेली तन छूकर मन को पावन करती जाती है
भागीरथ से पूछो क्या है तपस्या गंगा कैसे मिल जाती है
पतित पावनी सरल सरिता ये गंगा है अविरल बहती जाती है

©Shweta Duhan Deshwal
  #गंगा