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मय्यावेश्य मनो ये मां नित्य युक्त उपासते ! श्रद्धय

मय्यावेश्य मनो ये मां नित्य युक्त उपासते !
श्रद्धया परयोपेतारस्ते मे युक्तात्मा मताः !!
:

श्री कृष्ण कहते हैं कि जो श्रद्धायुक्त उपासक मेरे सगुण रूप की उपासना करते हैं वो मुझे अतिउत्तम लगते हैं ।
गी. अ. 12/02
:
जो जीवात्मा अपनी इन्द्रियों को वश में किए मन बुद्धि को स्थिरकर ज्ञानयोग से मेरे निराकार स्वरूप की उपासना करते हैं वो मुझे ही प्राप्त होते है ।
गी. अ.-12/03-04
:
अपने सभी कर्मों को मुझे अर्पितकर मेरे नामरूप का गुणगान करते हैं,उनका कल्याण भी मैं शीघ्र ही करता हूँ ।
गी. अ.- 12/06-07 एवं सततयुक्त ये भक्तास्त्वां पर्युपासते !
ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः !!
:
हे कृष्ण मुझे ये बताओ😊
किस तरह से आपको प्राप्त किया जा सकता है ?
सगुणस्वरूप की उपासना से या निराकार स्वरूप की भक्ति से !
गी. अ. 12/01
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मय्यावेश्य मनो ये मां नित्य युक्त उपासते !
श्रद्धया परयोपेतारस्ते मे युक्तात्मा मताः !!
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श्री कृष्ण कहते हैं कि जो श्रद्धायुक्त उपासक मेरे सगुण रूप की उपासना करते हैं वो मुझे अतिउत्तम लगते हैं ।
गी. अ. 12/02
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जो जीवात्मा अपनी इन्द्रियों को वश में किए मन बुद्धि को स्थिरकर ज्ञानयोग से मेरे निराकार स्वरूप की उपासना करते हैं वो मुझे ही प्राप्त होते है ।
गी. अ.-12/03-04
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अपने सभी कर्मों को मुझे अर्पितकर मेरे नामरूप का गुणगान करते हैं,उनका कल्याण भी मैं शीघ्र ही करता हूँ ।
गी. अ.- 12/06-07 एवं सततयुक्त ये भक्तास्त्वां पर्युपासते !
ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः !!
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हे कृष्ण मुझे ये बताओ😊
किस तरह से आपको प्राप्त किया जा सकता है ?
सगुणस्वरूप की उपासना से या निराकार स्वरूप की भक्ति से !
गी. अ. 12/01
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एवं सततयुक्त ये भक्तास्त्वां पर्युपासते ! ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः !! : हे कृष्ण मुझे ये बताओ😊 किस तरह से आपको प्राप्त किया जा सकता है ? सगुणस्वरूप की उपासना से या निराकार स्वरूप की भक्ति से ! गी. अ. 12/01 :