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दिल से निकली और होठों तक ये मेरे बात आई और कागज़ पर

दिल से निकली और होठों तक ये मेरे बात आई
और कागज़ पर 'कलम' ने फिर बिखेरी रोशनाई
'भूलने' की 'कोशिशों' में... मैं लगा था रात-दिन 
पूर्णिमा का चाँद देखा,..फिर 'तुम्हारी' याद आई

--प्रशान्त मिश्रा "शरद पूर्णिमा का चाँद"
दिल से निकली और होठों तक ये मेरे बात आई
और कागज़ पर 'कलम' ने फिर बिखेरी रोशनाई
'भूलने' की 'कोशिशों' में... मैं लगा था रात-दिन 
पूर्णिमा का चाँद देखा,..फिर 'तुम्हारी' याद आई

--प्रशान्त मिश्रा "शरद पूर्णिमा का चाँद"

"शरद पूर्णिमा का चाँद"