कुछ बेहतर पाने की तलाश में चलता रहा। मैं उम्मीद के चराग़ सा अंधेरे में जलता रहा। मंज़िल खूबसूरत हो तो रास्ते कौन देखता है! मैं भी उसे पाने को बेख़ौफ़ सफ़र करता रहा। तन्हाई से टकराया कितनी ही ठोकरें खाया। फिर भी मील के पत्थरों से हाथ मिलाता रहा। मैं अभी चल रहा हूँ ख़ुद को सम्भाले राह में। कई बार मौसम बदला और मुझे भरमाता रहा। मैं भटका या ये भटकते रास्ते हैं समझता नही! मैं "पंछी" हूँ तो फ़ितरत से ही पंख फैलाता रहा। 🎀 विशेष प्रतियोगिता-3 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 8 से 10 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। 🎀 इस प्रतियोगिता में विजेता बनने के लिए समूह की आज की सभी प्रतियोगिताओं में भाग लेना अनिवार्य है। 🎀 विजेता को एक साल का प्रीमियम सबस्क्रिप्शन उपहार स्वरूप दिया जाएगा।