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" लाल धब्बा " ( अनुशीर्षक में पढ़े ) दिसंबर का मही

" लाल धब्बा "
( अनुशीर्षक में पढ़े ) दिसंबर का महीना था , रात के पौने 11 बजे रहे थे , मेरी फोन की घंटीयाँ रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी , मैंने हड़बड़ाहट में जैसे-तैसे फोन उठाई तो दूसरी तरफ से एक कंपन सी आवाज आयी - भैया ! एक और लाल धब्बा लग गया है । उसकी बातों को सुन कर एैसा लगा मानो एक बार फिर से, दिल्ली लाल हो चुकी हो। एैसा पहली बार नहीं हुआ था की लाल धब्बे मुझे दिखने लगे थे, इसकी बीज तो करीब ढेड़ महीने पहले ही बो दी गयी थी जब मैनें पहली बार दिल्ली में अपना पाँव रखा था। अभी पुरानी दिल्ली के ,आटो स्टैंड की ओर दो कदम ही मुश्किल से बढ़ा था, की जमीं पे लाल धब्बों के निशान दिखने लगे ,थोड़ा और पास जाकर देखा तो पता चला ,ये किसी के खून के धब्बे है , अब चूँकि मैं दिल्ली में नया था तो मैनें इसे नजरअंदाज करना ही उचित समझा , मगर हैरत तो मुझे तब हुई जब आँटो में भी वहीं लाल धब्बों के निशान पाये गये, थोड़ा धैर्य का किला तो वहाँ भी डगमगाया था मगर मनोबल टस से मस ना हुआ , मगर ये लाल धब्बों का सिलसिला रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी ।गली ,मोहल्ले , बसों ,होटलों में ,मैं जहाँ भी जाता वे मुझे ना चाहते हुये भी दिख ही जाया करती थी , बार-बार मन में एक ही प्रश्ऩ उठ रहे थे -क्या दिल्ली के लोगों को वाकई ,लाल धब्बों की आदत पड़ चुकी थी या फिर यहाँ सभी मेरी तरह मूक-दर्शक बने फिरते है ? और मेरा ये भ्रम तब दूर हुआ जब मैनें लाल धब्बों को मिटाने की ठानी और अपना इक कदम धब्बों के क्षेत्र में आगे बढ़ा दिया। अब मैं थोड़ा लाल धब्बे को लेकर सक्रिया भी हो गया था, आखिर हो भी क्यों ना , मिटाने का जुनून जो सवार था सर पे , जब भी कहीं लाल धब्बों को देखता तो लोगों को इक्टठा करता , उनसे लाल धब्बों को मिटाने की अपील करता। मगर हुआ इसके ठीक विपरीत ,लोगों का रवैया लाल धब्बों के प्रति कम ,मेरे प्रति ज्यादा उत्तेजित हो गया , समस्या अब यह थी की उन्हें लाल धब्बे दिखते नहीं थे मगर मुझे उनकी सत्यता पे तनिक भी विश्वास ना था , एेसा प्रतित हुआ मानो सब के सब झूठे है और मुझसे पीछा छुड़ाना चाहते हो । मगर मैनें भी हार कहाँ मानी , चल पड़ा पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने आखिर ,मामला भी तो गंभीर था - पूरे दिल्ली में खून के धब्बों पाये गये थे । लाल धब्बों के सुनते ही पुलिस के हाथ - पाँव ढ़ीले पड़ गये ,एैसा लगा मानो ,पूरी की पूरी पुलिस ही बैक्फुट पर आ गई हो ,मगर खोजी कुत्तों के आ जाने से सारे लाल धब्बे कानून की नजर में धुल गये । और हुआ ये की ,अंत में मुझे पागल व सनकी करार दे दिया गया । समझ में नहीं आ रहा था , आखिर लाल धब्बा है क्या ? और ये केवल मुझे ही क्यों दिखती है ? किसी और की नजर में क्यों नहीं ? 

इतने सारे सवालों से सामना हो ही रहा था की अचानक मेरी नजर अखबार के उस छोटे से टुकड़े पे पड़ी जिस पर एक खबर छपी थी प्रशांत नगर की ,जहाँ पिछले महीने ही रेप की वारदात हुई थी और आनन - फानन में ही सही ,मगर मेरे मस्तिष्क ने उन सारे लाल धब्बों को रेप से जोड़ना शुरू कर दिया था और जो परिणाम सामने आई वो बेहद चौंका देने वाली थी - लाल धब्बे ठीक उसी जगह पर पाये गये थे जहाँ रेप जैसी घिनौनी हरकत को अंजाम दिया गया था । जिस तरह से रेप की घटनाओं में आये दिन इजाफा हो रहा था उससे तो एैसा ही प्रतित हो रहा था की वो दिन दूर नहीं जब दिल्ली एक दिन लाल धब्बों की चपेट में पूरी तरह से आ जायेगी । मगर दिल्ली में लाल धब्बों की कितनी अहमियत है, ये बात अब तक सिर्फ मैं ही जानता था ।आखिर कहूँ भी तो , किससे कहूँ और अगर मानो कह भी दिया तो क्या दिल्लीवाले पागल व सनकी लोगों पर विश्वास करेंगे , इसी उधेड़बुन में, मैं रोडियो 93.5 FM के दफ्तर तक जा पहुँचा था जहाँ मेरे द्वारा काफी अनुरोध करने पर वे मेरी बातों को दिल्ली वासियों तक पहुँचाने को राजी हुये । करीब आधे - पौने घंटे के भीतर ही मैं दिल्ली का उभरता हुआ सितारा बन चुका था , लोगों में लाल धब्बों को मिटाने की प्रबल इच्छाशक्ति जग चुकी थी , वे किसी भी कीमत पर अपनी दिल्ली को लाल होता नहीं देख सकते थे और तभी एक एैसी फोन कॉल आती है जिससे मेरी जिंदगी थम सी जाती है मगर दिल्ली कैसे थमती ?..उसने तो लाल धब्बों को मिटाना जो सिख रखा था । वो अगले ही पल, एकजुट होकर सड़कों पर उतरती है और लाल धब्बें एक बार फिर से धुलती है ।
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" लाल धब्बा "
( अनुशीर्षक में पढ़े ) दिसंबर का महीना था , रात के पौने 11 बजे रहे थे , मेरी फोन की घंटीयाँ रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी , मैंने हड़बड़ाहट में जैसे-तैसे फोन उठाई तो दूसरी तरफ से एक कंपन सी आवाज आयी - भैया ! एक और लाल धब्बा लग गया है । उसकी बातों को सुन कर एैसा लगा मानो एक बार फिर से, दिल्ली लाल हो चुकी हो। एैसा पहली बार नहीं हुआ था की लाल धब्बे मुझे दिखने लगे थे, इसकी बीज तो करीब ढेड़ महीने पहले ही बो दी गयी थी जब मैनें पहली बार दिल्ली में अपना पाँव रखा था। अभी पुरानी दिल्ली के ,आटो स्टैंड की ओर दो कदम ही मुश्किल से बढ़ा था, की जमीं पे लाल धब्बों के निशान दिखने लगे ,थोड़ा और पास जाकर देखा तो पता चला ,ये किसी के खून के धब्बे है , अब चूँकि मैं दिल्ली में नया था तो मैनें इसे नजरअंदाज करना ही उचित समझा , मगर हैरत तो मुझे तब हुई जब आँटो में भी वहीं लाल धब्बों के निशान पाये गये, थोड़ा धैर्य का किला तो वहाँ भी डगमगाया था मगर मनोबल टस से मस ना हुआ , मगर ये लाल धब्बों का सिलसिला रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी ।गली ,मोहल्ले , बसों ,होटलों में ,मैं जहाँ भी जाता वे मुझे ना चाहते हुये भी दिख ही जाया करती थी , बार-बार मन में एक ही प्रश्ऩ उठ रहे थे -क्या दिल्ली के लोगों को वाकई ,लाल धब्बों की आदत पड़ चुकी थी या फिर यहाँ सभी मेरी तरह मूक-दर्शक बने फिरते है ? और मेरा ये भ्रम तब दूर हुआ जब मैनें लाल धब्बों को मिटाने की ठानी और अपना इक कदम धब्बों के क्षेत्र में आगे बढ़ा दिया। अब मैं थोड़ा लाल धब्बे को लेकर सक्रिया भी हो गया था, आखिर हो भी क्यों ना , मिटाने का जुनून जो सवार था सर पे , जब भी कहीं लाल धब्बों को देखता तो लोगों को इक्टठा करता , उनसे लाल धब्बों को मिटाने की अपील करता। मगर हुआ इसके ठीक विपरीत ,लोगों का रवैया लाल धब्बों के प्रति कम ,मेरे प्रति ज्यादा उत्तेजित हो गया , समस्या अब यह थी की उन्हें लाल धब्बे दिखते नहीं थे मगर मुझे उनकी सत्यता पे तनिक भी विश्वास ना था , एेसा प्रतित हुआ मानो सब के सब झूठे है और मुझसे पीछा छुड़ाना चाहते हो । मगर मैनें भी हार कहाँ मानी , चल पड़ा पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने आखिर ,मामला भी तो गंभीर था - पूरे दिल्ली में खून के धब्बों पाये गये थे । लाल धब्बों के सुनते ही पुलिस के हाथ - पाँव ढ़ीले पड़ गये ,एैसा लगा मानो ,पूरी की पूरी पुलिस ही बैक्फुट पर आ गई हो ,मगर खोजी कुत्तों के आ जाने से सारे लाल धब्बे कानून की नजर में धुल गये । और हुआ ये की ,अंत में मुझे पागल व सनकी करार दे दिया गया । समझ में नहीं आ रहा था , आखिर लाल धब्बा है क्या ? और ये केवल मुझे ही क्यों दिखती है ? किसी और की नजर में क्यों नहीं ? 

इतने सारे सवालों से सामना हो ही रहा था की अचानक मेरी नजर अखबार के उस छोटे से टुकड़े पे पड़ी जिस पर एक खबर छपी थी प्रशांत नगर की ,जहाँ पिछले महीने ही रेप की वारदात हुई थी और आनन - फानन में ही सही ,मगर मेरे मस्तिष्क ने उन सारे लाल धब्बों को रेप से जोड़ना शुरू कर दिया था और जो परिणाम सामने आई वो बेहद चौंका देने वाली थी - लाल धब्बे ठीक उसी जगह पर पाये गये थे जहाँ रेप जैसी घिनौनी हरकत को अंजाम दिया गया था । जिस तरह से रेप की घटनाओं में आये दिन इजाफा हो रहा था उससे तो एैसा ही प्रतित हो रहा था की वो दिन दूर नहीं जब दिल्ली एक दिन लाल धब्बों की चपेट में पूरी तरह से आ जायेगी । मगर दिल्ली में लाल धब्बों की कितनी अहमियत है, ये बात अब तक सिर्फ मैं ही जानता था ।आखिर कहूँ भी तो , किससे कहूँ और अगर मानो कह भी दिया तो क्या दिल्लीवाले पागल व सनकी लोगों पर विश्वास करेंगे , इसी उधेड़बुन में, मैं रोडियो 93.5 FM के दफ्तर तक जा पहुँचा था जहाँ मेरे द्वारा काफी अनुरोध करने पर वे मेरी बातों को दिल्ली वासियों तक पहुँचाने को राजी हुये । करीब आधे - पौने घंटे के भीतर ही मैं दिल्ली का उभरता हुआ सितारा बन चुका था , लोगों में लाल धब्बों को मिटाने की प्रबल इच्छाशक्ति जग चुकी थी , वे किसी भी कीमत पर अपनी दिल्ली को लाल होता नहीं देख सकते थे और तभी एक एैसी फोन कॉल आती है जिससे मेरी जिंदगी थम सी जाती है मगर दिल्ली कैसे थमती ?..उसने तो लाल धब्बों को मिटाना जो सिख रखा था । वो अगले ही पल, एकजुट होकर सड़कों पर उतरती है और लाल धब्बें एक बार फिर से धुलती है ।
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satyamkumar6034

Satyam Kumar

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