7. देवी कालरात्रि और संख्या - 3 पर मेरा मत ----- नवदुर्गाओं के 9 रूपों में से 6 रूपों को क्रमशः 9- अंक से लेकर 4 अंकों तक जीवन, पोषण, संसार के कौतूहल, ब्रह्माण्ड की रचना, प्रकृति की माँ और प्रेम के साकार स्वरूप कात्यायनी के बारे में बात की। आज 7 वां दिन माँ कालरात्रि का है। मेरा अपना मनना है कि उनके नाम से ही मालूम होता है कि वे समय की रचना से पूर्व की दुनिया हैं।हम उसे प्रलय काल भी कह सकते हैं। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से पूर्व सम्पूर्ण सृष्टि अंधकार मय ही तो होती है। उसी अंधकार का नाम कालरात्रि है। वे 3 आँखों वाली देवी हैं।ये 3 आँखें संसार के तीन गुण हैं। सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। इन तीन गुणों से ही त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। वैदिककाल के ऋषियों ने त्रैतवाद से संसार की व्याख्या की। त्रैतवाद के अनुसार दुनिया 3 के योग से बनी। वे परमात्मा, प्रकृति और जीवात्मा के रूप में दुनिया का अस्तित्व मानते हैं। समय के भी 3 भाग (भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल) हैं। आओ देवी कालरात्रि के दर्शन करने के लिए कैप्शन पढ़ें--- 7. देवी कालरात्रि और संख्या - 3 पर मेरा मत ----- नवदुर्गाओं के 9 रूपों में से 6 रूपों को क्रमशः 9- अंक से लेकर 4 अंकों तक जीवन, पोषण, संसार के कौतूहल, ब्रह्माण्ड की रचना, प्रकृति की माँ और प्रेम के साकार स्वरूप कात्यायनी के बारे में बात की। आज 7 वां दिन माँ कालरात्रि का है। मेरा अपना मनना है कि उनके नाम से ही मालूम होता है कि वे समय की रचना से पूर्व की दुनिया हैं।हम उसे प्रलय काल भी कह सकते हैं। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से पूर्व सम्पूर्ण सृष्टि अंधकार मय ही तो होती है। उसी अंधकार का नाम कालरात्रि है। वे 3 आँखों वाली देवी हैं।ये 3 आँखें संसार के तीन गुण हैं। सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। इन तीन गुणों से ही त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। वैदिककाल के ऋषियों ने त्रैतवाद से संसार की व्याख्या की। त्रैतवाद के अनुसार दुनिया 3 के योग से बनी। वे परमात्मा, प्रकृति और जीवात्मा के रूप में दुनिया का अस्तित्व मानते हैं। समय के भी 3 भाग (भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल) हैं। आओ देवी कालरात्रि के दर्शन करें। --- दुनिया के अस्तित्व में आने से पूर्व केवल रात ही शेष रहती है। रात ही आने वाली सुबह का निर्माण करती है। काल समय और मृत्यु दोनों की संज्ञा है। मृत्यु अंत नहीं पुनः नव जीवन श्रृंखला की एक कड़ी है। इस कड़ी को जोड़ने की शक्ति कालरात्रि में ही है। वे सृजन और प्रलय की स्वामिनी हैं। इसलिए उनका एक नाम 'शुभंकारी' भी है। उनके चलने से स्वर उत्पन्न होते हैं अर्थात जब रात्रि गति करती है तो नाद होगा और नाद से ही सृष्टि का निर्माण। वे अपने तीन गोल नेत्रों से सृष्टि को त्रिगुणमयी बनाती हैं।इन्हीं तीन गुणों में संसार के सभी जीव बर्ताव करते हैं।