मिट्टी से कुम्हार का प्रेम महज़ प्रेम ही नहीं उसके जीवन का आधार है..!!
परन्तु कुम्हार इस मूल से परिचित नहीं अगर तो...
मिट्टी के बाह्य आवरण का आकर्षण शोकाकुल करता रहेगा उसको कि
वो उस रूप को बरकरार नहीं रख सकता जिससे वो कहता है कि प्रेम है ।
उसे पुन: ना पाने की कसक पूरी उम्र एक घाव बन के रह जाती कुम्हार के मन में ;
मिट्टी के उसी रूप को स्पर्श ना कर पाने की कल्पना मात्र से ही वो बिखर जाता शीशे की तरह उसी मिट्टी में ...
फ़िर कभी वो चाह के भी सिमट नहीं पाता ।।
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