यु छोड़ कर चल दिए हो जो हाथ तुम , कोई कसूर तो मेरा कर जाते बयान , बड़े नाज़ुक से धागे थे जो बाँध कर रखे थे , आज बिखरे हुए है तेरे मेरे दरम्यान , इक अजनबी सी कशिश थी , इक सिरहन सी होती थी , जाने अनजाने तुम छु लेती थी मुझे और बढ़ जाती थी नज़दीकियां , अब तो जैसे खामोश अँधेरा सा पसरा है , न मैं हु न तुम हो यहाँ , बड़े नाज़ुक से धागे थे जो बाँध कर रखे थे , आज बिखरे हुए है तेरे मेरे दरम्यान , तेरी इक मुस्कराहट में मिल जाती थी , मुझे अपनी सारी दुनिया , किसी खिलते फूल किसी मासूम सी दुआ में , कितनी सस्ती थी दिल की खुशिया, पर अब ज़ख्म है हाथो में , जो उठते है तेरे लिए , जाने क्यों नहीं क़ुबूल होती मेरी दुआ , बड़े नाज़ुक से धागे थे जो बाँध कर रखे थे , आज बिखरे हुए है तेरे मेरे दरम्यान , राकेश मेहरा "राम" नाज़ुक धागे