जो जला पाए हम प्रेम का दीया! ये धूल से उठकर इंद्रलोक छू लें अमावस की बेला है चाँद राह भूलें क्यों तिमिर का स्वभाव उजाले पर गढ़कर क्यों निशा का दोष रवि पर मढ़कर क्यों दारुण विरुदावलियों को जीवन समझकर हर प्रकाशित अंतर्मन को प्रेम समझकर आशा से ही ख़त्म होगा हृदय का अंधेरा एक ढ़ेबरी से भी आ सकता है उजेरा जो जला पाए हम प्रेम का दीया! ♥️ Challenge-742 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ :) ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।