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छांव, सुकूं, रोजगार कुछ न उसके हाथ आया.., मज़बूर 'म

छांव, सुकूं, रोजगार कुछ न उसके हाथ आया..,
मज़बूर 'मज़दूर' आज चलते चलते अपने गांव आया...!

शहर ले गयी थी एक उम्मीद "रोटी दो वक़्त की"...,
कांधे पे बच्चे और पीछे पत्नी को भी साथ लाया...!

'मुफ़लिसी' मैं जीने वाले ये दाने दाने को संजोते हैं...,
हमारी तो छत टपकी तब कहीं हमे मज़दूर याद आया...!

सारा गांव आँख लगाये बैठा हैं पगडंडी पर अभी भी...,
शहर एक ख़्वाब ही था जिसे वो वहीं छोड़ आया...!!

                        -JAY D #mazdoor #labour #NAHAR'S FOUNDATION #selflove #respect #sewadharm
छांव, सुकूं, रोजगार कुछ न उसके हाथ आया..,
मज़बूर 'मज़दूर' आज चलते चलते अपने गांव आया...!

शहर ले गयी थी एक उम्मीद "रोटी दो वक़्त की"...,
कांधे पे बच्चे और पीछे पत्नी को भी साथ लाया...!

'मुफ़लिसी' मैं जीने वाले ये दाने दाने को संजोते हैं...,
हमारी तो छत टपकी तब कहीं हमे मज़दूर याद आया...!

सारा गांव आँख लगाये बैठा हैं पगडंडी पर अभी भी...,
शहर एक ख़्वाब ही था जिसे वो वहीं छोड़ आया...!!

                        -JAY D #mazdoor #labour #NAHAR'S FOUNDATION #selflove #respect #sewadharm
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Jay D

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