सुनो ना प्रेम मॉनसून में जब मेंढक टर्राते हैं तो यकीन होता जाता है कि पूरी धरती तर हो गई है। शांति सी होती है...बारिश के बाद वाले घंटे में..! कहीं हल्की फुहारें तो कभी छत से टपकती एक-दो बेवक्त वे कुछ बूंदें...., पत्तों से चलकर धीरे-धीरे तना और फिर धीरे-धीरे जड़ों की तरफ बढ़ती हुई .. रीसती हुई बूंदों की कतारें... सोंधी सोंधी खुशबू से लुभावना हो चला मौसम... और बचे हुए बादल आसमान में इतराते हुए कुछ इंद्रधनुष-सा बनाने की होड़ में पागल हुए जा रहे हैं। सूरज की रोशनी खेलते हुए बादलों के बीच से धरती के आंचल को