खोलते ही "इटियटबॉक्स" एक स्वर टकराता है कानों से कर्कश सा, करता अनगनित प्रश्न। और भाव भी क्या? "भारत जानना चाहता है", उसे उत्तर दो। समझ आया कि यह विडंबना है और प्रसारण घर में बैठे ये पत्रकार अनभिज्ञ हैं स्वयं जनता की समस्याओं से। वो उत्तर अवश्य मांगता है परन्तु उन मुद्दों पर जो जनता स्वयं ही नहीं जानती, उसकी चेतना को तो इन्हें सुनकर याद आता है ओह! यह भी एक प्रश्न है आधारहीन तर्क-वितर्क के बीच परिहास बनता है लोकतंत्र का, और इस हास्यप्रधान नाटक को देख वो भूल जाता है अपना बुझा चुल्हा और अनिश्चित भविष्य की पीड़ा। आशा नहीं है उसे अब मूंद ली है पत्रकारिता ने आंखें बंद कर बैठी है कानों को। या फिर चौंधिया गई है देख अपार धन की चमक, अब उसे दिखाई नहीं देती बेरोज़गारी, अशिक्षा और देशव्यापी अव्यवस्था, कि ऊपर से आते प्रोत्साहन स्वरों ने नीचे के कंदर्न को दबा दिया है। एक होड़ सी लगी है "टी आर पी" की और हर रोज़ जनतंत्र का मोखौल उड़ाता एक नया खुलासा, असंगत, अतार्किक। कि प्रश्नात्मक चेतना शून्य में पूछती है क्या हैं ये? जनता के प्रवक्ता या सत्ता के गुलाम? #hindipoetry #politics #media #godimedia #yqbaba #yqdidi