इंद्र -"हे सूर्यपुत्र! तुम तो अतुलित बल के धाम हो, विनयशील हो, दानवीरता के ही दूजे नाम हो। मैं हूँ एक निर्धन याचक, एक एहसान चाहता हूँ, मैं तुमसे कवच और कुंडल का दान चाहता हूँ।" कर्ण - "समझ गया मैं, आप विप्र नहीं कोई और हैं, देवराज हैं, आप ही देवताओं के सिरमौर हैं। लेकिन मोह में पड़कर मेरा बल हरने आए हैं, हे देवेंद्र स्वपुत्र हेतु आप छल करने आए हैं। पर चलिए कवच और कुंडल मैं दान करता हूँ, हे देवेंद्र! आपकी याचना का मैं मान करता हूँ। पुत्र पर विश्वास नहीं जो मुझे निर्बल करते हैं, सुत समर्थ नहीं हैं तो, मुझे विकल करते हैं ।" इंद्र- " हूँ लज्जित, प्रतिक्षण मैं धरा में धँसा जाता हूँ, हे कर्ण! मैं इस समय पुत्रमोह में फँसा जाता हूँ। तेरी हानि की कुछ भरपाई होगी, ऐलान करता हूँ, मैं तुम्हें अपना एकघ्नी वज्र प्रदान करता हूँ। सिर्फ़ एक बार तुम इसका उपयोग कर सकते हो, चाहे कोई भी हो, तुम उसके प्राण हर सकते हो।।" कवच-कुंडल का दान #vks #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqmuzaffarpur #yqgudiya