बे - नूर हो जुगनूँ सरिस, जब हूर ना टकरा सके। नीलमणि की रुचिर आभा,भी न समता पा सके। हो कांति हीरे की तिरोहित छुप गई खुद शर्म से, फिर चांँद में जुर्रत कहां, जो सामने वह आ सके। अरुण शुक्ल अर्जुन प्रयागराज (पूर्णत: मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित) #forher मुसाफिर.... यज्ञेश्वर वत्स