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धीरे-धीरे रे मनुज, धीरे न सब कुछ होय, समय गया तो

धीरे-धीरे रे मनुज, धीरे न सब कुछ होय, 
समय गया तो सब गया, बाद में कछु न प्राप्त होय।।  हिन्दी की विभिन्न काव्य विधाओं में "दोहा" एक विशिष्ठ स्थान रखता है। दो पंक्तियों में एक पूर्ण विचार प्रस्तुत कर देने की क्षमता के चलते यह विधा आज भी प्रासंगिक है। 

दोहा, एक मात्रिक छन्द है। मात्राओं की गणना पर आधारित यह छन्द प्रत्येक पंक्ति में 13 और 11 मात्राओं के योग से बनता है। 
दोहे के चार चरण होते हैं। 

मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार
"निदा फ़ाज़ली"
धीरे-धीरे रे मनुज, धीरे न सब कुछ होय, 
समय गया तो सब गया, बाद में कछु न प्राप्त होय।।  हिन्दी की विभिन्न काव्य विधाओं में "दोहा" एक विशिष्ठ स्थान रखता है। दो पंक्तियों में एक पूर्ण विचार प्रस्तुत कर देने की क्षमता के चलते यह विधा आज भी प्रासंगिक है। 

दोहा, एक मात्रिक छन्द है। मात्राओं की गणना पर आधारित यह छन्द प्रत्येक पंक्ति में 13 और 11 मात्राओं के योग से बनता है। 
दोहे के चार चरण होते हैं। 

मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार
"निदा फ़ाज़ली"
ashagiri4131

Asha Giri

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