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कभी- कभी बिखर जाते हैं हम, सपनों के टूटने से ज़रा

 कभी- कभी बिखर जाते हैं हम,
सपनों के टूटने से ज़रा सहम जाते हैं हम।
क्या कहूँ पलकें फिर भी आशा का दामन
नहीं छोड़तीं, देख कलियाँ फिर खिल जाते हैं हम।
रात भी अजब सा दोस्ताना निभाती है अक्सर,
हर सुबह की पहली किरण संग फिर जी जाते हैं हम।

©Sita Prasad
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