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खामोशी से दरक रहे है, दिल के अरमां हम कैसे रोके टू

खामोशी से दरक रहे है, दिल के अरमां
हम कैसे रोके टूटते बिखरते अरमां

हमारी उम्र बीत गयी वफा निभाने में
उनको एक पल न लगा, वफा लुटाने में

दम घुट सा गया है, अब मोहब्बत का
सिलसिला अधूरा रह गया, अब मोहब्बत का, 

चाहत को यूँ, सरे आम
बदनाम होते देखा है, इन आँखों ने

मोहब्बत को नीलाम, होते देखा है,
इन आँखों ने,सराफत अब सायद, बची हो कहीं

प्यार में, इंतजार को भी बेसब्र होते 
देखा है, इन आँखों ने 

खामोशी से दरक रहे है दिल के अरमां,
 हम कैसे रोके टूटते बिखरते अरमां

©पथिक..
  #realization