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तपती धरा झुलसता जीवन, सूनी सड़कें गलियां निर्जन

तपती धरा झुलसता जीवन,
			सूनी सड़कें गलियां निर्जन।
सूखी नदियां धरती प्यासी।
			पसरी चारो तरफ उदासी।।
दूर बहुत अभी मुझें है चलना।
			मुश्किल ठौर छांव का मिलना।।
करू जतन और विनती तुमसें।
			बरसों मेघ तुम अमृत बनकें।। 
तृप्त हो धरती निर्मल हो मन।
			नीरमयी हो नदियां पावन।।

अविरल विपिन
तपती धरा झुलसता जीवन,
			सूनी सड़कें गलियां निर्जन।
सूखी नदियां धरती प्यासी।
			पसरी चारो तरफ उदासी।।
दूर बहुत अभी मुझें है चलना।
			मुश्किल ठौर छांव का मिलना।।
करू जतन और विनती तुमसें।
			बरसों मेघ तुम अमृत बनकें।। 
तृप्त हो धरती निर्मल हो मन।
			नीरमयी हो नदियां पावन।।

अविरल विपिन