दिलों की मजबूत डोर से, हम इस क़दर बँधते गए। मिले थे कभी किसी राह में, फिर हमसफ़र बनते गए। चाहत थी साथ चलने की, मंज़िल तक कदम बढ़ते गए। इल्म न हुआ कब पास आ गए, कब हमकदम बनते गए। संग चले हैं साथ अगर तो, साथ हमेशा रह जाएंगे। जीवन के हर दुख दर्द को, मिल बाँटकर सह जाएंगे। जीवन की ये परिभाषा अपनी और यही अभिलाषा है। जीवन भर का साथ निभाना, जीवनसाथी से ही आशा है। उम्मीदों का सफर सुहाना, उम्मीद एक दूजे की बनते गए। मिले थे कभी किसी राह में, फिर हमसफ़र बनते गए। ♥️ Challenge-516 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।