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मसीहा-ए-मोहब्बत क़िस्मत से अगर हारा होता क्या तब

मसीहा-ए-मोहब्बत 

क़िस्मत से अगर हारा होता क्या तब ही पसंद आया होता,
राह से भटका आवारा होता क्या तब ही पसंद आया होता,

दर्द झेले हैं मैंने भी मगर इश्तहार देने की फ़ितरत नहीं मेरी,
टूटा हुआ कोई सितारा होता क्या तब ही पसंद आया होता,

ज़िंदगी तोड़ती है हौसले हर एक के अलग-अलग मायनों में,
बिल्कुल बेकार, बेसहारा होता क्या तब ही पसंद आया होता,

सिर्फ़ हौसलों के बदौलत बिखरकर भी सँभला नज़र आया मैं,
हालातों से मज़बूर, बेचारा होता क्या तब ही पसंद आया होता,

वो हमसफ़र नहीं, मसीहा बनना चाहते हैं मोहब्बत में “साकेत",
समझ कि तक़दीर का मारा होता, हाँ तब ही पसंद आया होता।

IG:— @my_pen_my_strength

©Saket Ranjan Shukla मसीहा-ए-मोहब्बत..!
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✍🏻Saket Ranjan Shukla
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मसीहा-ए-मोहब्बत 

क़िस्मत से अगर हारा होता क्या तब ही पसंद आया होता,
राह से भटका आवारा होता क्या तब ही पसंद आया होता,

दर्द झेले हैं मैंने भी मगर इश्तहार देने की फ़ितरत नहीं मेरी,
टूटा हुआ कोई सितारा होता क्या तब ही पसंद आया होता,

ज़िंदगी तोड़ती है हौसले हर एक के अलग-अलग मायनों में,
बिल्कुल बेकार, बेसहारा होता क्या तब ही पसंद आया होता,

सिर्फ़ हौसलों के बदौलत बिखरकर भी सँभला नज़र आया मैं,
हालातों से मज़बूर, बेचारा होता क्या तब ही पसंद आया होता,

वो हमसफ़र नहीं, मसीहा बनना चाहते हैं मोहब्बत में “साकेत",
समझ कि तक़दीर का मारा होता, हाँ तब ही पसंद आया होता।

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